मंगलवार, 18 जनवरी 2011

फिल्म समीक्षा--चलो संभल के, रहो संभल के- ए मिशन टू रोड सेफ्टी !













भाई लोगों ने मिलकर एक फिल्म बना इज डाली,फिलिम टोटल टल्ली पर है ...साला टल्ली शूटर टल्ली होकर इस दुनिया से इज कल्टी मार गया...ऐसे इज बहुत शरीफ लोग भी दारू पीकर गाड़ी चलाते ऊपर चले जाते है ...तो क्या ये फिलिम तो एक दम हिट है बोस !जो भी देखेगा उसको या उसकी फॅमिली में किसी को गर किडनेप कर दिया तो भाईलोग टवंटी परसेंट लेस करेगा...क्योंकि अपुन लोगों का भी कोर्पोरेट सोसल रेस्पोंसिबिलिटी है...आने का नहीं तो अपुन तुमको  देख लेगा ....फिलिम की समीक्षा पाखी भाई ने लिख डाली है...चुचाप पढलेने का ..ज्यास्ती बोलने का नहीं...क्या?

फिल्म समीक्षा--चलो संभल के, रहो संभल के- ए मिशन टू रोड सेफ्टी !

  देश में प्रतिवर्ष सवा लाख से अधिक मौतों और राष्ट्रीय सम्पदा की एक लाख करोड़ से अधिक की हानि के जिम्मेदार सडक हादसों को रोकने के लिए किये जाने वाले अभिनव प्रयासों की बहुत बड़ी कमी वर्षों से नजर आरही है.ऐसे में परिवहन विभाग के अधिकारियों और सामाजिक संस्था के मिले जुले किसी भी प्रयास को सकारात्मक नजरिये से देखे जाने की आवश्यकता है.फिल्म ''चलो संभल के ,रहो संभल के''सडक सुरक्षा विषय पर बनाई गई प्रथम लघु फिल्म है जो हिंदी में है.लगभग एक घंटे की यह फिल्म आरम्भ से अंत तक अपनी सोद्धेश्यता को कायम रखती है.फिल्म में अनंत देसाई नाम के चरित्र के माध्यम से आम व्यक्ति दवारा सड़क सुरक्षा और नियमो के प्रति सतही और लापरवाही पूर्ण रवैये को दिखाया गया है जो बदलते सामाजिक आर्थिक परिवेश में गैरजिम्मेदार चालक और सामाजिक व्यक्ति है.अनंत देसाई की भूमिका धनपत सिंह ने निभाई है तथा जिम्मेदार पत्नी की भूमिका पायल कुमावत ने निभाई है.फिल्म रोचक तब हो जाती है जब यमराज और चित्रगुप्त सड़क हादसों से होने वाली मौतों से यमलोक की दशा बिगड़ने के कारण खोजने पृथ्वीलोक आते हैं और अनंत देसाई के साथ विचरण करते हुए सड़क सुरक्षा और इससे जुड़े विभिन्न आयामों को देखते है.यमराज की भूमिका में दीपक मोगरी जो फिल्म के निर्देशक भी है ने फिल्म को बाँधने का काम किया है,फिल्म में अनंत देसाई का बेटा मोटर साइकल की जिद पूरी न होने पर अपनी नसे काट कर आत्महत्या का प्रयास करता है एवं अनंत देसाई अपने बेटे को मोटर साइकल दिलाकर स्कूल की प्रिंसिपल को कहता है कि ''मेरे पास पैसे है तो मैंने बेटे को मोटर साइकल दिलाई है..''जिसको सुनकर दर्शक इस बात को  सोचने पर मजबूर होता है कि समाज में किस प्रकार नए मूल्यों का प्रवेश हो चुका  है .फिल्म का शीर्षक गीत ''चलो संभल के ...''बहुत अच्छा बना है.रोचक  तथ्य यह है कि इस फिल्म के गीत मन्ना लाल रावत  जो परिवहन सेवा के अधिकारी है एवं दीपक मोगरी ने लिखे है.फिल्म के सह निर्देशक प्रकाश सिंह राठौड़ जो फिल्म के तथ्यात्मक पक्ष और उद्धेश्य पूर्णता को बरक़रार रखने में सफल रहे है तथा शोधकर्ता ज्ञानदेव विश्वकर्मा दोनों ही परिवहन सेवा के अधिकारी है.इन अधिकारीयों के रचनात्मक प्रयासों ने फिल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.समय चक्र के माध्यम से प्रगति और विकास को दर्शाने और टी वी पर परिचर्चा के माध्यम से राज्य सरकार कि सड़क सुरक्षा नीति एवं कार्यक्रमों की उपयोगी जानकारी आम आदमी तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है.हालाँकि फिल्म यहाँ कुछ खिंचती सी महसूस होती है पर अपने विषय और सरोकार से कहीं भी भटकती नहीं है.
    पटकथा लेखक के रूप में दीपक मोगरी ने सशक्त कहानी लिखी है.हालाँकि फिल्म के पात्रों के अभिनय में थोड़ी बहुत कमी खलती है.परन्तु फिल्म आरम्भ से अंत तक एक सशक्त सामाजिक सन्देश देती है कि आदमी जानते हुए भी कैसे अनुशासन भंग करता है.परिवहन विभाग,राजस्थान राज्य परिवहन सेवा परिषद् और मानव जीवन रेखा संस्थान ने सीमित संसाधनों से अल्प समय में सड़क सुरक्षा विषय पर देश की पहली हिंदी भाषा में बनी लघु फिल्म का निर्माण किया है जो सराहनीय प्रयास है.
     वस्तुतः प्रादेशिक परिवहन अधिकारी जितेन्द्र सिंह जिन्होंने इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए 'लेक सिटी रोड सेफ्टी वीक' के दौरान एक टीम को इस काम में लगाया था,अब निश्चित ही अपनी टीम पर गर्व कर सकते है.फिल्म अपनी कमियों के बावजूद अपने मकसद को पूरा करती है.भारतीय संस्कृति को पृष्ठभूमि रख कर सड़क सुरक्षा के विषय पर बनी इस फिल्म का सन्देश इतना महत्वपूर्ण है कि शायद ही कोई परिवार ऐसा होगा जो अपने बच्चों सहित सभी परिजनों को यह फिल्म नहीं दिखाना चाहेगा.      

पुनश्च-यह समीक्षा भाई लोगों ने सर पर घोडा रख कर लिखवाई गयी है...पाठक वास्तविकता जानने के लिए अपना विवेक काम में लें.
                                                   प्रकाश पाखी 

रविवार, 13 सितंबर 2009

महामूर्खाधिपति - भाई (विक्रम)और टल्ली(बेताल)-३



(मोबाइल और ड्राइविंग)
'अच्छा सर्किट..अपुन थोडा भाई को मुर्दाघर पे ड्राप करके आता है.'पकिया बोला.
रात के साधे ग्यारह बजे थे.मोटर साइकिल स्टार्ट हुई.और थोडी देर में भाई अस्पताल जाने वाले रास्ते पर ओझलहो गया.
रास्ते में पकिया बोला-भाई,हो सकता है टल्ली साला झूठ बोल रहा हो..आज कल बम ब्लास्ट तो होता है...खोपडीब्लास्ट होने का बात अपुन को कुछ जमता नहीं.टल्ली साला फेंकता होएंगा.
'नहीं पकिया..पहले तो यह झूठ नहीं होएंगा...पण गर इज ये झूठ है भी तो अपुन खोपडी की रिस्क नहीं ले सकता.'
अस्पताल का मुर्दाघर के पास भाई को ड्राप करके पकिया की मोटर साइकल वापस घूम गई.
थोडी देर में टल्ली भाई के कंधे पर लटक कर एक और कहानी सुना रहा था.
भाई एक गाँव था नन्दनगर.वहां पर होली पर हर साल एक अजीब प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था.इसप्रतियोगिता में लोग मूर्खता पूर्ण हरकते करते और महामूर्खाधिपति का खिताब जीतने का प्रयास करते.उसप्रतियोगिता में गाँव के तीन लोग हमेशा खिताब के दावेदार होते थे.एक का नाम जड़मति था,दूसरे का नाममूढ़मति और तीसरे का नाम शून्यमति था .
एक बार होली पर भव्य तरीके से महामूर्खाधिपति प्रतियोगिता का आरम्भ हुआ.गाँव के रिटायर्ड प्रिंसिपलनिर्णायक थे.स्कूल के स्टेडियम में लोग खचाखच भर गए.सबसे पहले गाँव के एक होनहार लड़के मोहित ने मोटरसाइकल पर तरह तरह के करतब दिखये...उसने दोनों हाथ छोड़ कर मोटर साइकल चलाई,मोटर साइकल चलातेमोबाइल पर बात करके दिखाया,मोटर साइकल चलाते अखबार पढ़कर दिखाया.
सबसे पहले जड़मति ने एक बड़े से थैले में आस पास हवा से कुछ पकड़ते हुए डाला..और काफी देर तक ऐसा करतारहा.फिर थैला निर्णायक को देते हुए कहा की उसने गाँव की हवा को थैले में बंद कर दिया है..अब जब लाईट चलीजाएगी तो वह थैले से निकाल कर हवा खाएगा.सब लोग उसकी मूर्खता पर हंसने लगे.
मूढ़मति को निर्णायक ने पूछा कि क्या तुम बता सकते हो मैं कहाँ हूँ...उसने निर्णायक के घर फोन करके पूछा औरफिर बताया कि आप घर पर नहीं हो.
शून्यमति ने कहा कि वह धरती का बीच पता करने वाला है....और फिर उसने अपने कुरते कि जेब से एक फीतानिकला और जमीन को नापते नापते खेतो में ओझल हो गया.
अब भाई तू बता कि महामूर्खाधिपति खिताब किसको मिला.अगर तू सही सही नहीं बताएगा तो तेरे सर के हजारटुकड़े हो जाएंगे.
भाई ने एक लम्बी सांस ली और कहा महामूर्खाधिपति खिताब तीनो में किसी को नहीं मिला होगा...असली मूर्ख तोमोहित नाम का लड़का था जिसने अपना जीवन खतरे में डाल कर मोटर साइकल के करतब दिखाए...देख टल्लीमोटर साइकल या कोई अन्य वाहन हमें सुरक्षित और जल्दी अपने गंतव्य पर पहुंचाने के साधन है..आपनी जानको खतरे में डालकर इनका प्रयोग करना सबसे बड़ी मूर्खता है जिसके कारण हम हर साल एक लाख चौदह हजारलोगों को खो देते है.फिर उसके अलावा महामूर्खाधिपति खिताब का कोई और दावेदार कैसे हो सकता है.

'एकदम सही बोला भाई...प्रिंसिपल साहब ने मोहित को ही महामूर्खाधिपति घोषित किया...और पूरे गाँव में एकसन्देश दिया.पण तू बोल गया...तेरा मौन टूटा और अब में चला...हा!हा!हा!...'
और टल्ली बेताल उड़ कर मुर्दाघर के बरगद पर लटक गया.

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

प्री बजट बिजनेस डेलिगेशन -भाई(विक्रम)और टल्ली(बेताल) भाग २


मोबाइल पर घंटी बजी.भाई का नंबर देख कर मैं चौंक गया.हडबडाते हुए बोला-
'हेलो, भाई..'
''भाई बोल रेला हूँ ..''
''हाँ, भाई...आपका नंबर देखते ही समझ गया था..कि आप ही होंगे...''
''मोबाइल पर अपुन का फोटो थोड़े ही आ रेला है..जो तू नंबर देख के समझ जाएंगा..!अभी मान ले पकिया अपुन के इज फोन पे बोलेंगा तो भी तू अपुन को समझ लेंगा क्या ..?''
''नहीं भाई....गलती हो गया.."
''तो ऐसे बोल न ..ज्यादा श्याणा काएकू बनता है रे.''
''अब सुन ले..दो बजे सीधा फाइनेंस मिनिस्ट्री के गेट के सामने मील.''
मेरा दिमाग चकराने लगा.
''फाइनेंस मिनिस्ट्री ..भाई सब ठीक तो है..''
''एक दम झकास...तू पहुँच जा...बाकी सर्किट बता देगा..''और भाई ने फोन काट दिया.मझे दौरा पड़ने को हो रहा था पर अन्य कोई विकल्प न देखकर में जैसे तैसे फाइनेंस मिनिस्ट्री की बिल्डिंग का सामने जा पहुंचा.
थोडी देर में काले कुरते और ब्लू जींस में सर्किट चौडा सीना किये मुस्कुराते हुए आते दिखा.पीछे पीछे भाई और पकिया चले आरहे थे.

''सर्किट...भाई..!आप सब यहाँ..क्या कर रहे हैं?''
''कुछ नहीं पाखी भाई..,फाइनेंस मिनिस्टर बजट पेश कर रेला है...और हमने सुना कि सब बिजनेस के बड़ा बड़ा लोग बिजनेस डेलिगेशन लेकर अपनी अपनी इंडस्ट्री के इंटरेस्ट के वास्ते फाइनेंस मिनिस्टर से मिल रेला है तो अपुन भाईलोग भी सोचा कि अपुन भी भाई इंडस्ट्री के वास्ते भी कुछ रीलिफ पैकेज के अनाउन्समेंट के वास्ते एक बिजनेस डेलिगेशन फाइनेंस मिनिस्टर से मिल ले तो ठीक रहेगा...अभी रिसेशन वर्ल्ड में बोत हो रेला है.''सर्किट
बोला.
''भाई इंडस्ट्री ?''
''अरे बोला न..अपुन भाई लोगों का भी तो बड़ा इंडस्ट्री है..भाई कमाल हो गया, इसको तो ये भी पता नहीं है...किडनेपिंग,ब्लेकमेलिंग,सुपारी,सट्टा,जमीं पर कब्जा,मकान खाली कराना, टिकट ब्लेक,नकली नोट,नकली स्टाम्प सत्यम शेअर, हवाला और एक का तीन करना...बाप,कितना बड़ा इंडस्ट्री है और तेरे कू पता इज नहीं..अरे पाखी भाई इस इंडस्ट्री में तो सबसे ज्यादा रिटर्न है..साला सीधा एक का दस होता है.बड़े बड़े लोग इसमें इन्वेस्ट करते है...अपुन की माने तो तू भी कुछ इन्वेस्ट कर दे एक दम सॉलिड रिटर्न मिलेगा बाप.. और किसी डी मेट अकाउंट की जरूरत नहीं..''
सर्किट चहक के बोला.
''सर्किट हमारे पास क्या इन्वेस्ट होना है.''मैंने कहा.
''और हाँ,सब नेता लोग अपुन के बिना कुछ भी नहीं..साला अपुन भाई लोग नहीं हो सब नेता गाँधी गिरी पे आ जायेंगे.''पकिया बोला.
''चुप कर बे पकिया..सब नेता लोग अपुन का बड़ा भाई है..उनके बारे में रेस्पक्ट रखने का.''भाई ने कहा.
''बरोबर बोला भाई..पण गर इज अपुन भाई लोग ना हो तो इलेक्शन का तो साला वाट लग जायेगी.''सर्किट बोला.
''अच्छा ..अच्छा, भाई, मान लिया तुम लोगो का इंडस्ट्री बहुत बड़ा है.पर फाइनेंस मिनिस्टर से तुम्हारी डिमांड क्या थी.''मैंने बात को खत्म करने के लिए पूछा.
''ये देख ले...सर्किट ने जींस की पिछली जेब से दो पेज का ज्ञापन निकाल कर मुझे दिया और खुद पास कड़ी मोटर साइकिल के कांच में अपने बाल सवारने लगा.
मैं धड़कते दिल से ज्ञापन पढने लगा.

सीधा मीले,
अपुन के कंट्री के
फाइनेंस मिनिस्टर कू,

लफडा--अपुन भाई लोगो के बिजनेस में बरोबर सेटिंग बिठाने के वास्ते.

रेस्पक्ट टनाटन,

बड़े भाई,

हिन्दू को राम राम ,मुसलमान को सलाम,सिख को सत् श्री अकाल,इसाई को मेरी क्रिसमस.तुम तो जानता इज है कि अपुन भाई लोगों ने कंट्री के वास्ते कितना कुछ तिकडम पानी बिठाया है.दर इज अपुन भाई लोग नहीं होते तो अपुन के देश भी अमरीका की तरह नियमो का गुलाम होता.कंट्री का क्या होता होता है..वो जी डी पी ..उसमे कम से कम तीस चालीस परसेंट तो अपुन लोगो का ही हिस्सा होएंगा.
आगे लिखते है कि कंट्री का सारा भट्केला लोग अपुन भाई लोगों की इंडस्ट्री का इज हिस्सा है.
अभी तुम बोलता है कि रियल एस्टेट में फस्क्लास ग्रोथ होएला है..माँ कसम सारा ग्रोथ अपुन भाई लोगो कि वजह से हुआ..बिहार में छत्तीस गढ़ में अपुन भाईलोगों की बिरादरी अपनी जान पर खेल कर लोगो के किडनेप मर्डर कर के कंट्री की सर्विस कर रेला है.
और कंट्री के नेता लोग तो अपुन लोगो के बड़े भाई और आदर्श होएला है..हमारे कई भाई लोग संसद में पहुँच कर कंट्री की सच्ची सेवा करेला है..और अपुन भाई लोगो की जिन्दगी में सबसे बड़ा प्रमोशन इज बड़े भाई बोले तो नेता बनना है.
अब सोचो की इलेक्शन में कितना दारू बाटना पड़ता है..अपुन लोग नहीं हो तो सारी पब्लिक प्यासी मर जाए..
अपुन ज्यास्ती नहीं लिखेगा..इतना ही कहेला है कि अपुन भाई लोगों की इंडस्ट्री में भी थोडा सेटिंग बिठालो.
अपुन की डिमांड आगे लिखे ली है--
१.जिन लोगो को हम भाई लोग किडनेप करे उनकी फॅमिली को लो इंटरेस्ट पे किडनेप लोन दिया जावे.
२.पुलिस,आर टी ओ के हफ्ते की रेट आधी की जावे.
३.भाई लोग जिस जमीन पर कब्जा करे या मकान खाली करावे उस पर लफडा बाजी बंद हो.
४.तेलगी भाई के बहुत सारे फर्जी स्टाम्स भाई लोगो के पास पडेले है..उनको वेस्ट करने से भाई लोगों की तो टें बोल गई है..सच में बाप कई भाई लोग बहुत नीचे आ गयेले है.अपुन का अड़वाइस है कि उनको सरकारी अफसर और नेताओं की बेनामी प्रोपर्टी की रजिस्ट्री में काम में लिया जावे...इससे दो लफडे एक साथ सेट हो जाएंगे..
५.सारे सिनेमा हाल में २५ परसेंट टिकट ब्लेक के लिए भाई लोगों के लिए रिजर्व रखे जाएं.
६.भाई लोगो को रिटर्न भरने में छूट दी जाए.और उनका मनी एक नंबर वाईट माना जाए ..अपुन प्रोमिस करता है कंट्री का ब्लेक मनी का प्रोब्लम खत्म हो जाएगा.
इसके अलावा संसद में पहुंचेले भाई लोगों की एक स्टेंडिंग कमिटी बनाई जाए.जो भाई लोगो के इंटरेस्ट के वास्ते काम करे.

आपके अपने भाई लोग.

''और अपुन तो बोला भाई जैसा इंटेलिजेंट भाई को राज्यसभा में मेंबर बनाया जाए.''सर्किट बोला.
''फिर फाइनेंस मिनिस्टर ने क्या कहा.''मैंने पूछा. ''कहना क्या था,वो तो अपुन को बहु भाव दिया.पण अपुन ने देखा उसके आस पास सिकुरिटी में वो इज अब तक छप्पन बैठा था.भाई ने कहा बे सर्किट अब खिसक ले नहीं तो अब तक सत्तावन अट्ठावन हो जाएंगा.और अपुन खिसक लिया.''सर्किट ने कहा.
''अरे भाई,आज तो अमावस है..साला टल्ली बहुत टाइम से बरगद पे लटकेला है.पिछली अमावस को अपुन लोग पुलिस के डर से अंदर ग्राउंड था...साला टल्ली मुर्दा हो कर मच मच कर रहा था.दो महीने से लटक रहा है..हा हा हा..''सर्किट हसने लगा.
''अरे,हाँ सर्किट आज तो अपुन का प्लान है टल्ली को ठिकाने लगाने का..पण टल्ली भी साला...स्टोरी ऐसी छोटी सुनाता है कि आधे रस्ते में बोलना पड़ जाता है.आज लम्बी सुनाए तो श्मशान ले जाकर साले को फूंक डालूँ.''भाई कहने लगा.
''पण भाई पिछली बार जो लकडिया रखवाई थी वे तो बारिश में गीली हो गई होगी,तो मैंने राशन कि दूकान से पांच पीपे केरोसीन वहां रखवा दिया है.''
''उसको छोड़ रुस्तम को बुलाया है कि नहीं..''
''उसका बंदोबस्त हो गया है भाई..''
हम सब रुखसत हुए.

उस अमावस की रात को भाई(विक्रम) ने टल्ली(बेताल)को बाद के पेड़ से उतारा और कंधे पर लटका लिया.
टल्ली ने अपने विलायती पव्वे से दो घूँट लगाकर स्टोरी चालू कर दी--
भाई सुन,
चन्द्रनगर गाँव का एक शान्ति लाल नाम का व्यक्ति अमरीका सेटल हो गया था.उसने वहां बहुत धन और नाम कमाया.उसकी इकलौती बेटी सुरेखा बहुत रूपवती,बुद्धिमान और समझदार थी.शांतिलाल अपनी बेटी की शादी किसी हिन्दुस्तानी नौजवान से करना चाहता था.क्योंकि शांतिलाल को हिन्दुस्तान की संस्कृति से बहुत प्रेम था.पर उसे एक ही चिंता थी.....हिन्दुस्तान में एक्सीडेंट बहुत होते है..इसलिए वह चाहता था कि सुरेखा की शादी ऐसे युवक से हो जो सुन्दर ,गुनी और समझदार होने के साथ साथ ट्रेफिक के बारे में भी पूरी जानकारी रखता हो.
तो उसने गुनी लड़को की खोज शुरू की ...एक से बढ़कर एक लड़के सुरेख के वर बनने के लिए आये.घर खानदान सुन्दरता ,पढाई,समझदारी के आधार पर तीन युवको हरिनाम,श्रीनाम और लक्ष्मीपति का चयन किया गया.
फिर एक दिन तीनो लड़को को शांतिलाल के घर बुलाया गया.वहां शांतिलाल की बेटी सुरेखा ने राखी के स्वयम्वर की तरह उन तीनो के आगे एक शर्त रखी और कहा -तुम तीनो में जो मरे एक प्रश्न का सही उत्तर दे देगा मैं उसके साथ ब्याह रचाऊँगी.
तीनो उसके प्रश्न का उत्तर देने को तैयार हो गए.
''किसी रोड के किनारे अगर लगातार पीली पट्टी हो तो उसका क्या मतलब होता है?''
हरिनाम ने कहा-वाहन चलाते समय इसको पार नहीं करना चाहिए.
श्री नाम ने कहा-वाहन चलाते समय न तो इसे पार करना चाहिय न इसको पार करके गाडी पार्क करनी चाहिए.
लक्ष्मीपति ने कहा-पीली पट्टी को उस समय पार करना चाहिए जब वाहन पार्क करना हो.

अब भाई तू बता सही उत्तर किसने दिया?अगर तू सही न बोला तो तेरे सर के हजार टुकड़े हो जायेंगे.

तो साथियों अब आप बताएं कि सही उत्तर क्या है?....
अगर सोच लिया हो तो नीचे भाई के उत्तर से तुलना करे और बताएं कि आप कितने सही थे.
हाँ एक और बात यह ब्लॉग यातायात कि जागरूकता के प्रयास का हिस्सा मात्र है...किसी भी विधिक सन्दर्भों में इसकी जानकारी का प्रयोग ना किया जावे. .इस ब्लॉग कि जानकारी के प्रयोग से पहले ब्लॉग लेखक की लिखित अनुमति अवश्य ली जावे.









तो भाई ने कहा---
टल्ली तू साला फिर स्टोरी को जल्दी खत्म कर रेला है..और ऐसे इज रहा तो तू साला जिन्दगी भर बरगद पर सड़ेगा...पण अपुन तेरे को बता देता है कि श्री लाल एकदम सही बोला.सड़क के बाएँ किनारे पट्टी सुरंग पुल आदि स्थानों में या असुरक्षित पार्किंग स्थानों में होती है..जिसको पार करना और पार्किंग करना दोनों माना होता है.

भाई,एकदम सही बोला...सरेखा कि शादी श्री लाल के साथ धूम धाम से हुई...
पण तू ने मौन तोड़ दिया तो अब मैं चला....!

हा..!हा...!हा...!!

और टल्ली (बेताल)फिर मुर्दा घर के बरगद पर लटक गया.

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

शकुन बड़े कि श्याम





पिछली पोस्ट सड़क सुरक्षा पर लिखी थी.रेस्पोंस ज्यादा उत्साहवर्द्धक नहीं थे.मुझे लगा कुछ कमियां रह गई होंगी.एक तो विषय वस्तु ज्यादा पसंद आने वाली नहीं थी.सड़क पर आज कौन बात करना चाहता है भले ही साल भर में लाख सवा लाख लोग सड़क पर दम तोड़ते हों.दूसरा विषय ब्लॉग पर प्रायः लिखी जाने वाली कहानियों और कविताओं से भिन्न था सो आप लोगो की मेहरबानी नहीं हुई.तीसरा प्रश्न पूछ कर आपसे जवाब चाहे थे तो यह तो परीक्षा हो गई न,ब्लॉग भी पढ़े और जवाब भी दें यह कैसे हो सकता है?और फिर कुछ लिखने में भी कमी रह गई होगी.मेहरबानों मैं ठहरा विज्ञानं का विद्यार्थी सो ज्यादा अच्छा लिखना तो वैसे ही आता नहीं. खैर थोडा निराश सा था इन सब पर विचार करते हुए और सोचने लगा कि शकुन अच्छे नहीं है तो सड़क सुरक्षा पर लिखने का इरादा छोड़ देना ही ठीक रहेगा.


फिर कल मेरे गुरूजी चौहान सा से मुलाकात और कुछ इधर उधर की चर्चा हुई.चर्चा शकुन शकुन पर चल पड़ी .
उनहोंने गीता के पहले अध्याय के इकतीस्वें श्लोक "निमित्तानि विपरीतानि पश्यामि च केशव ..."के बारे में बताते हुए कहा कि अकर्मण्यता के दोष से ग्रसित हो व्यक्ति अर्जुन की भांति बुरे शकुन देखता है.फिर उन्होंने तीन पंक्तियों में बहुत अच्छी बात कह दी-

शकुन बड़े कि श्याम
अर्जुन रथ को हांक दे
भली करे भगवान्

तो मित्रों मैनें इरादा कर लिया कि इस विषय पर जरूर लिखूंगा .आपको abhiyakti ब्लॉग पर सड़क सुरक्षा पर आखिरी बार पोस्ट दिखाई देगी. इसके बाद मेरे दूसरे ब्लॉग 'भाई लोग ...'पर पूरी तरह से सड़क सुरक्षा पर ही रचनाएं मिलेगी जब आपकी इच्छा हो गौर कीजियेगा ...

अब प्रस्तुत है पिछली पोस्ट पर पूछे प्रश्न का जवाब-
टल्ली के प्रश्न पर रुस्तम ने इन्टरनेट और दोस्तों के आये फोन की जानकारियों का विश्लेषण किया और बताया कि गलती रमेश की थी.
भाई ने एक लम्बी सांस छोड़ी और कहा -देख टल्ली गलती तो मोटर साइकल चालक रमेश की थी.एक तो बिना सुरक्षा उपाय यानिकी हेलमेट के दोनों गाडी पर सवारी कर रहे थे.मोटर साइकल दुर्घटनाओं में नब्बे प्रतिशत से अधिक मौते सर की चोट से होती है.
दूसरा जब भी कहीं सड़क पर वाहन चलाएं तो चालक को सड़क पर 'रास्ते के अधिकार'(राइट आफ वे )का नियम पता होना चाहिए.जिसका मतलब होता रास्ते पर पहले गुजरने का हक़ नियम से किसका बनता है.
जैसे ट्रेन की पटरियों पर गुजरने का पहला हक़ ट्रेन का हक़ है तो ट्रेन आने के समय रेलवे क्रॉसिंग चाहे फाटक वाला हो या बगैर फाटक का,सारा ट्रेफिक पटरी के दोनों ओर रुक जाता है.
इसी तरह चढाई चढ़ते समय रास्ते पर गुजरने का पहला अधिकार चढाई चढ़ने वाले वाहन का होता है तो इस नियम से अगर रास्ता न हो तो चढाई से नीचे उतरने वाले वाहनों को रुकना होगा.चढ़ने वाले वाहन रास्ते के अधिकारी होने के कारण अपने वाहनों को नहीं रोकेंगे..

और जब कोई अप्रोच रोड या छोटी सड़क हाइवे या एक्स प्रेस वे में मिलती है तो हाइवे पर गुजरने वाले वाहनों का रास्ते पर अधिकार बनता है अर्थात सड़क पर गुजरने का पहला हक़ ट्रक चलाने वाले का था.तो मोटर साइकल सवार को रुक कर ट्रक को पहले गुजरने देना था.फिर उसको रोड क्रॉस करनी थी.

रमेश ने दो दो गलतियाँ की इसलिए उसको अपनी और अपनी मंगेतर की जान गंवानी पड़ी.

टल्ली की बेताली शक्तियां जाग उठी..उसने रामलीला के रावण की तरह भयानक ठहाका लगाया और बोला -
भाई तूने एकदम सही बताया...पर तू बोल गया.और अब मैं चला.....
.
हा!हा!हा!....

और टल्ली (बेताल)फिर बरगद के पेड़ पर लटक गया.




आप चाहें तो अभिव्यक्ति पर लिखी भाई (विक्रम) और टल्ली(बेताल) की आरम्भ कथा नीचे पढ़ सकते है.





यह कहानी भाई लोगों की है।भाई लोगों ने अपने ब्लॉग को चलाने का काम मुझे सौंप दिया है।बदले में वे मुझसे हफ्ता नहीं वसूलेंगे.खैर, मैंने संजय से सलाह कर के काम ले लेने में ही अपनी खैर समझी.भाई लोगों को बता दिया कि टपोरी लेंग्वेज अपुन के बस की नहीं है.इसलिए हिंदी में ही लिखूंगा.ज्यादा भी नहीं लिख पाऊंगा क्योंकि ज्यादा समय भी नहीं है और अपने ब्लॉग के साथियों के लिए भी कुछ तो लिखना पड़ेगा.और यह भी समझाया कि अगर ज्यादा लिखा गया तो पाठक आपकी रचनाओं पर शक करेंगे कि भाई ने किसी और लिखवाया होगा. भाईलोगों ने मेरी बातों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए मुझे इसकी इजाजत दे दी. भाई और टल्ली कि कथा ज्यादा पुरानी नहीं है.भाई कि गैंग का शूटर टिंकू टल्ली बोतलों पर निशाना लगाते लगाते बोतलों से दिल लगा बैठा.उसके बाद उसके कदम और निशाने दोनों चूकने लगे.अब भाई ही उसको संभालता था.एक दिन सर्किट टल्ली कि मौत कि खबर लाया तो सब सन्न रह गए.और उसके बाद वे अस्पताल गए तो यह सुनकर चकरा गए कि टल्ली कि बाडी(लाश) गायब हो गयी है. रात होने तक खोजबीन चली.पुलिस ने रपट रोजनामचा गुमशुदगी डाल कर इतिश्री कर ली.पर भाई और सर्किट टल्ली के अंतिम संस्कार की टेंशन में अस्पताल के मुर्दाघर के पास पव्वा खोल कर बैठ गए. मुर्दाघर के पीछे के बरगद के पेड़ पर टल्ली नजर आया तो दोनों फिर चौंक गए.और उसके बाद जब टल्ली हवा में तैरता हुआ नीचे आया तो उनकी आँखे आर्श्चय से फटने लगी.भाई ने कहा कि वे तो उसके क्रियाकरम की फिकर कर रहे थे पर वह तो जिन्दा था. टल्ली ने बताया कि वह अब बेताल बन गया है.हुआ यह था कि दारु पीकर ट्रक से भिड़ने पर टल्ली को मरकर यमलोक जाना था पर टल्ली दारु पीकर आज तक सही ठिकाने पर नहीं पहुंचा था तो यमलोक क्या पहुँचता.दारु के तस्कर जानी ने मुर्दाघर के बरगद पर स्मगलिंग की विलायती दारु छिपा रखी थी तो टल्ली वहां जा पहुंचा. उधर यमलोक में वर्क लोड ज्यादा हो रहा था तो यमराज ने उसदिन सम मरने वालों की आमद रोजनामचे में दर्ज कर ब्रह्माजी को ईमेल कर दिया.थोडी देर बाद टल्ली भी यमलोक पहुंचा तो यमराज ने उसकी आमद कराने से इनकार कर दिया. टल्ली भाई लोगों के साथ रह चुका था तो उसने तुरंत भूताधिकारों की मांग करते हुए यमराज की शिकायत ब्रह्माजी को करने की धमकी दी.साथ में सूचना के अधिकार के तहत पिछले पांच हजार वर्षों के रोजनामचे की प्रतिलिपियाँ मांग ली.सरकारी अफसर की तरह यमराज ने तुरंत समर्पण कर दिया और तरह तरह से उसको मनाने की कोशिश करने लगे.लम्बी उरूग्वे वार्ताओं के पश्चात् यमराज और टल्ली आखिर में गेट समझौते पर पहुंचे.समझौते की शर्तों के अनुसार टल्ली को ब्रह्माजी को शिकायत नहीं करनी थी बदले में यमराज ने टल्ली को बेताल अर्थात दुनिया के भूतो का शहंशाह बना दिया.बेताल एक मात्र भूत होता है जिसे अपने मानव शरीर के साथ रहने की इजाजत थी.उसके पास कई मायावी शक्तियां थी. पर टल्ली बेताल की मजबूरी यह थी की वह अपने आप कहीं जा नहीं सकता था.हाँ,दुनिया के किसी कोने से उड़कर अपने आप अपने ठिकाने (बरगद के पेड़)पर आ सकता था.और हाँ, उसके पास वापस जिन्दा होने का अवसर भी था.अगर कोई व्यक्ति अमावस्या की रात को कापालिक शमशान में ले जाकर शव सिद्धि कर ले तो उसकी जान वापस आ सकती थी. बाकी शर्ते विक्रम बेताल की तरह ही थी.बेताल को ले जाने वाला रास्ते में बोलता है तो बेताल वापस पेड़ पर पहुँच जाएगा.गलत उत्तर पर खोपडी के हजारों टुकड़े हो जायेंगें॥इत्यादि. सर्किट ने कहा कि रस्ते में नहीं बोलने वाली बात तक तो ठीक है.पर गलत जवाब देने पर खोपडी में ब्लास्ट हो जाने का मामला थोडा रिस्की है.उसने कहा कि टल्ली तो पहले से मरेला है..अब भाई को काहे को मरवाता है. फिर भी भाई नहीं माना तो वह और पकिया रुस्तम को पकड़ लाये.भाई को एक मोबाइल और वाई फाई इअर फोन दिलवाया.अब टल्ली बेताल जो भी प्रश्न पूछेगा रुस्तम कि मदद से भाईलोग जवाब देने को तैयार थे. पहली अमावस्या को भाई ने टल्ली को कंधे पर उठाया और कापालिक शमशान कि और चल पड़ा. टल्ली बेताल ने अपनी कहानी आरम्भ की-सूरजपुर नाम के एक छोटे कसबे में रमेश नाम का एक युवक रहता था.उसके पड़ोस में रहनेवाली सरिता नाम की युवती से वह प्यार करता था.दोनों में दोस्ती हो गई.दोस्ती प्यार में बदल गई.लड़का बहुत समझदार और सुशील होने के कारण सरिता के माँ बाप को यह रिश्ता पसंद था.पर रमेश शादी से पहले अपने पैरों पर खडा होना चाहता था. और एक दिन रमेश को एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में एक अच्छी नौकरी मिल गई.वे दोनों और उनके परिवार वाले बहुत खुश हुए.अब जल्दी ही उनकी शादी तय की जासकती थी.रमेश और रीना इस ख़ुशी को सेलिब्रेट करने के लिए कसबे से दूर बाईपास पर स्थित सबसे बढ़िया रेस्टोरेंट में डिनर का प्रोग्राम रखा..दोनों मोटर साइकल पर रवाना हुए.शहर से बाहर जाते समय आखिरी चौराहे पर सलीम नामक नाम का ट्रेफिक पुलिस वाला मिला हालांकि वह उन दोनों को जानता था फिर भी उन दोनों के हेलमेट न होने के कारण चालान काट कर जुर्माना कर लिया.वे दोनों फिर आगे बढ़ गए.शहर के बाहर एक्सप्रेस हाइवे पर दायीं ओर जाना था तो रमेश को जहाँ हाइवे शहर से आने वाली रोड से मिलता था वहां से क्रॉस कर दूसरी ओर अपनी लेन पकडनी थी. तो भाई जब वे मोटर साइकल पर हाइवे के उस ओर जा रहे थे तो एक ट्रक वाला बड़ी तेज स्पीड से आ रहा था.दोनों ने उस ट्रक को हाथ से रुकने का इशारा किया...पर ट्रक वाले छोटी गाड़ियों की परवाह कहाँ करते है.,, और...! ट्रक ने उनके टक्कर मार दी.टल्ली बेताल ने अफ़सोस जताते हुए कहा. बेचारे दोनों मारे गए. उनके घर की खुशियाँ मातम में बदल गयी.उनका प्रेम परवान नहीं चढ़ सका शादी की तारीख तय होने से पहले दोनों दुनिया से विदा हो गए. पर भाई तू सच सच बता दोषी कौन था? वह लापरवाह ट्रक ड्राईवर जिसने इशारा करने के बाद भी ट्रक को नहीं रोका. या सलीम ट्रेफिक वाला जिसने बिना हेलमेट उन दोनों को आगे जाने दिया. या रमेश जो बिना हेलमेट हाइवे पर जाकर दोनों की जान खतरे में डाली. भाई जो तू सही सही नहीं बोला तो तेरी खोपडी के हजार टुकड़े हो जायेंगें. अब मेहरबानों कद्रदानों आपकी मदद की जरूरत है...रुस्तम सर्किट पकिया और भाईलोग मोबाईल आन करके भाई(विक्रम)की मदद को तैयार खड़े है...हो सकता है आपके सही जवाब से भाई की जान बच जाये.. (जवाब आखिरी टिप्पणी में मिलेगा. सही जवाब उम्मीद करता हूँ कि आपको आपकी टिप्पणियों में मिल जाएगा..वर्ना मैं बताने का प्रयास करूंगा. मित्रों! हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष एक लाख दस हजार लोग मारे जाते लगभग पांच लाख लोग घायल होते है...पन्द्रह हजार करोड़ का अनुमानित राष्ट्र को प्रतिवर्ष सम्पति की हानि होती है.. शायद हमारी कुछ जिम्मेदारी बनती है...इसलिए मैं छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ..आपके सुझावों और की आवश्यकता होगी. आप अपने सुझाव ईमेल से भेज सकते है.कई बार गंभीर विषयों पर गंभीर चर्चा बोझिल हो जाती है इसलिए मैंने इस विषय को हल्के फुल्के ढंग से कहने का प्रयास किया है.मूल प्रश्न यही है कि हम एक नागरिक के रूप में इतने अधिक लापरवाह क्यों हो जाते है कि अपनी जिन्दगी को खुद खतरे में डालकर दूसरों की गैर जिम्मेदारी तलाश करने की कोशिश करने लगते है.एक सड़क दुर्घटना एक परिवार की जिन्दगी हमेशा के लिए बदल देती है.इसमें खोई हुई चीजें कभी वापस नहीं मिलती है.फिर हम क्यों हेलमेट सीट बेल्ट को ट्रेफिक पुलिस की जिम्मेदारी समझते है. मैं जब छोटा था तो मेरे दादाजी हर पल मेरा ध्यान रखते थे.सारे संभावित खतरों से मुझे दूर रखने का प्रयास करते थे.मेरा स्वयम का भी यह मानना है कि किसी भी खतरे से खुद को बचाने वाले पहले व्यक्ति हम स्वयम ही हो सकते है. आपका सहयोग मिला तो इस तरह की और भी पोस्ट लिखने का प्रयास करूंगा.- प्रकाश)