गुरुवार, 16 जुलाई 2009

शकुन बड़े कि श्याम





पिछली पोस्ट सड़क सुरक्षा पर लिखी थी.रेस्पोंस ज्यादा उत्साहवर्द्धक नहीं थे.मुझे लगा कुछ कमियां रह गई होंगी.एक तो विषय वस्तु ज्यादा पसंद आने वाली नहीं थी.सड़क पर आज कौन बात करना चाहता है भले ही साल भर में लाख सवा लाख लोग सड़क पर दम तोड़ते हों.दूसरा विषय ब्लॉग पर प्रायः लिखी जाने वाली कहानियों और कविताओं से भिन्न था सो आप लोगो की मेहरबानी नहीं हुई.तीसरा प्रश्न पूछ कर आपसे जवाब चाहे थे तो यह तो परीक्षा हो गई न,ब्लॉग भी पढ़े और जवाब भी दें यह कैसे हो सकता है?और फिर कुछ लिखने में भी कमी रह गई होगी.मेहरबानों मैं ठहरा विज्ञानं का विद्यार्थी सो ज्यादा अच्छा लिखना तो वैसे ही आता नहीं. खैर थोडा निराश सा था इन सब पर विचार करते हुए और सोचने लगा कि शकुन अच्छे नहीं है तो सड़क सुरक्षा पर लिखने का इरादा छोड़ देना ही ठीक रहेगा.


फिर कल मेरे गुरूजी चौहान सा से मुलाकात और कुछ इधर उधर की चर्चा हुई.चर्चा शकुन शकुन पर चल पड़ी .
उनहोंने गीता के पहले अध्याय के इकतीस्वें श्लोक "निमित्तानि विपरीतानि पश्यामि च केशव ..."के बारे में बताते हुए कहा कि अकर्मण्यता के दोष से ग्रसित हो व्यक्ति अर्जुन की भांति बुरे शकुन देखता है.फिर उन्होंने तीन पंक्तियों में बहुत अच्छी बात कह दी-

शकुन बड़े कि श्याम
अर्जुन रथ को हांक दे
भली करे भगवान्

तो मित्रों मैनें इरादा कर लिया कि इस विषय पर जरूर लिखूंगा .आपको abhiyakti ब्लॉग पर सड़क सुरक्षा पर आखिरी बार पोस्ट दिखाई देगी. इसके बाद मेरे दूसरे ब्लॉग 'भाई लोग ...'पर पूरी तरह से सड़क सुरक्षा पर ही रचनाएं मिलेगी जब आपकी इच्छा हो गौर कीजियेगा ...

अब प्रस्तुत है पिछली पोस्ट पर पूछे प्रश्न का जवाब-
टल्ली के प्रश्न पर रुस्तम ने इन्टरनेट और दोस्तों के आये फोन की जानकारियों का विश्लेषण किया और बताया कि गलती रमेश की थी.
भाई ने एक लम्बी सांस छोड़ी और कहा -देख टल्ली गलती तो मोटर साइकल चालक रमेश की थी.एक तो बिना सुरक्षा उपाय यानिकी हेलमेट के दोनों गाडी पर सवारी कर रहे थे.मोटर साइकल दुर्घटनाओं में नब्बे प्रतिशत से अधिक मौते सर की चोट से होती है.
दूसरा जब भी कहीं सड़क पर वाहन चलाएं तो चालक को सड़क पर 'रास्ते के अधिकार'(राइट आफ वे )का नियम पता होना चाहिए.जिसका मतलब होता रास्ते पर पहले गुजरने का हक़ नियम से किसका बनता है.
जैसे ट्रेन की पटरियों पर गुजरने का पहला हक़ ट्रेन का हक़ है तो ट्रेन आने के समय रेलवे क्रॉसिंग चाहे फाटक वाला हो या बगैर फाटक का,सारा ट्रेफिक पटरी के दोनों ओर रुक जाता है.
इसी तरह चढाई चढ़ते समय रास्ते पर गुजरने का पहला अधिकार चढाई चढ़ने वाले वाहन का होता है तो इस नियम से अगर रास्ता न हो तो चढाई से नीचे उतरने वाले वाहनों को रुकना होगा.चढ़ने वाले वाहन रास्ते के अधिकारी होने के कारण अपने वाहनों को नहीं रोकेंगे..

और जब कोई अप्रोच रोड या छोटी सड़क हाइवे या एक्स प्रेस वे में मिलती है तो हाइवे पर गुजरने वाले वाहनों का रास्ते पर अधिकार बनता है अर्थात सड़क पर गुजरने का पहला हक़ ट्रक चलाने वाले का था.तो मोटर साइकल सवार को रुक कर ट्रक को पहले गुजरने देना था.फिर उसको रोड क्रॉस करनी थी.

रमेश ने दो दो गलतियाँ की इसलिए उसको अपनी और अपनी मंगेतर की जान गंवानी पड़ी.

टल्ली की बेताली शक्तियां जाग उठी..उसने रामलीला के रावण की तरह भयानक ठहाका लगाया और बोला -
भाई तूने एकदम सही बताया...पर तू बोल गया.और अब मैं चला.....
.
हा!हा!हा!....

और टल्ली (बेताल)फिर बरगद के पेड़ पर लटक गया.




आप चाहें तो अभिव्यक्ति पर लिखी भाई (विक्रम) और टल्ली(बेताल) की आरम्भ कथा नीचे पढ़ सकते है.





यह कहानी भाई लोगों की है।भाई लोगों ने अपने ब्लॉग को चलाने का काम मुझे सौंप दिया है।बदले में वे मुझसे हफ्ता नहीं वसूलेंगे.खैर, मैंने संजय से सलाह कर के काम ले लेने में ही अपनी खैर समझी.भाई लोगों को बता दिया कि टपोरी लेंग्वेज अपुन के बस की नहीं है.इसलिए हिंदी में ही लिखूंगा.ज्यादा भी नहीं लिख पाऊंगा क्योंकि ज्यादा समय भी नहीं है और अपने ब्लॉग के साथियों के लिए भी कुछ तो लिखना पड़ेगा.और यह भी समझाया कि अगर ज्यादा लिखा गया तो पाठक आपकी रचनाओं पर शक करेंगे कि भाई ने किसी और लिखवाया होगा. भाईलोगों ने मेरी बातों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए मुझे इसकी इजाजत दे दी. भाई और टल्ली कि कथा ज्यादा पुरानी नहीं है.भाई कि गैंग का शूटर टिंकू टल्ली बोतलों पर निशाना लगाते लगाते बोतलों से दिल लगा बैठा.उसके बाद उसके कदम और निशाने दोनों चूकने लगे.अब भाई ही उसको संभालता था.एक दिन सर्किट टल्ली कि मौत कि खबर लाया तो सब सन्न रह गए.और उसके बाद वे अस्पताल गए तो यह सुनकर चकरा गए कि टल्ली कि बाडी(लाश) गायब हो गयी है. रात होने तक खोजबीन चली.पुलिस ने रपट रोजनामचा गुमशुदगी डाल कर इतिश्री कर ली.पर भाई और सर्किट टल्ली के अंतिम संस्कार की टेंशन में अस्पताल के मुर्दाघर के पास पव्वा खोल कर बैठ गए. मुर्दाघर के पीछे के बरगद के पेड़ पर टल्ली नजर आया तो दोनों फिर चौंक गए.और उसके बाद जब टल्ली हवा में तैरता हुआ नीचे आया तो उनकी आँखे आर्श्चय से फटने लगी.भाई ने कहा कि वे तो उसके क्रियाकरम की फिकर कर रहे थे पर वह तो जिन्दा था. टल्ली ने बताया कि वह अब बेताल बन गया है.हुआ यह था कि दारु पीकर ट्रक से भिड़ने पर टल्ली को मरकर यमलोक जाना था पर टल्ली दारु पीकर आज तक सही ठिकाने पर नहीं पहुंचा था तो यमलोक क्या पहुँचता.दारु के तस्कर जानी ने मुर्दाघर के बरगद पर स्मगलिंग की विलायती दारु छिपा रखी थी तो टल्ली वहां जा पहुंचा. उधर यमलोक में वर्क लोड ज्यादा हो रहा था तो यमराज ने उसदिन सम मरने वालों की आमद रोजनामचे में दर्ज कर ब्रह्माजी को ईमेल कर दिया.थोडी देर बाद टल्ली भी यमलोक पहुंचा तो यमराज ने उसकी आमद कराने से इनकार कर दिया. टल्ली भाई लोगों के साथ रह चुका था तो उसने तुरंत भूताधिकारों की मांग करते हुए यमराज की शिकायत ब्रह्माजी को करने की धमकी दी.साथ में सूचना के अधिकार के तहत पिछले पांच हजार वर्षों के रोजनामचे की प्रतिलिपियाँ मांग ली.सरकारी अफसर की तरह यमराज ने तुरंत समर्पण कर दिया और तरह तरह से उसको मनाने की कोशिश करने लगे.लम्बी उरूग्वे वार्ताओं के पश्चात् यमराज और टल्ली आखिर में गेट समझौते पर पहुंचे.समझौते की शर्तों के अनुसार टल्ली को ब्रह्माजी को शिकायत नहीं करनी थी बदले में यमराज ने टल्ली को बेताल अर्थात दुनिया के भूतो का शहंशाह बना दिया.बेताल एक मात्र भूत होता है जिसे अपने मानव शरीर के साथ रहने की इजाजत थी.उसके पास कई मायावी शक्तियां थी. पर टल्ली बेताल की मजबूरी यह थी की वह अपने आप कहीं जा नहीं सकता था.हाँ,दुनिया के किसी कोने से उड़कर अपने आप अपने ठिकाने (बरगद के पेड़)पर आ सकता था.और हाँ, उसके पास वापस जिन्दा होने का अवसर भी था.अगर कोई व्यक्ति अमावस्या की रात को कापालिक शमशान में ले जाकर शव सिद्धि कर ले तो उसकी जान वापस आ सकती थी. बाकी शर्ते विक्रम बेताल की तरह ही थी.बेताल को ले जाने वाला रास्ते में बोलता है तो बेताल वापस पेड़ पर पहुँच जाएगा.गलत उत्तर पर खोपडी के हजारों टुकड़े हो जायेंगें॥इत्यादि. सर्किट ने कहा कि रस्ते में नहीं बोलने वाली बात तक तो ठीक है.पर गलत जवाब देने पर खोपडी में ब्लास्ट हो जाने का मामला थोडा रिस्की है.उसने कहा कि टल्ली तो पहले से मरेला है..अब भाई को काहे को मरवाता है. फिर भी भाई नहीं माना तो वह और पकिया रुस्तम को पकड़ लाये.भाई को एक मोबाइल और वाई फाई इअर फोन दिलवाया.अब टल्ली बेताल जो भी प्रश्न पूछेगा रुस्तम कि मदद से भाईलोग जवाब देने को तैयार थे. पहली अमावस्या को भाई ने टल्ली को कंधे पर उठाया और कापालिक शमशान कि और चल पड़ा. टल्ली बेताल ने अपनी कहानी आरम्भ की-सूरजपुर नाम के एक छोटे कसबे में रमेश नाम का एक युवक रहता था.उसके पड़ोस में रहनेवाली सरिता नाम की युवती से वह प्यार करता था.दोनों में दोस्ती हो गई.दोस्ती प्यार में बदल गई.लड़का बहुत समझदार और सुशील होने के कारण सरिता के माँ बाप को यह रिश्ता पसंद था.पर रमेश शादी से पहले अपने पैरों पर खडा होना चाहता था. और एक दिन रमेश को एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में एक अच्छी नौकरी मिल गई.वे दोनों और उनके परिवार वाले बहुत खुश हुए.अब जल्दी ही उनकी शादी तय की जासकती थी.रमेश और रीना इस ख़ुशी को सेलिब्रेट करने के लिए कसबे से दूर बाईपास पर स्थित सबसे बढ़िया रेस्टोरेंट में डिनर का प्रोग्राम रखा..दोनों मोटर साइकल पर रवाना हुए.शहर से बाहर जाते समय आखिरी चौराहे पर सलीम नामक नाम का ट्रेफिक पुलिस वाला मिला हालांकि वह उन दोनों को जानता था फिर भी उन दोनों के हेलमेट न होने के कारण चालान काट कर जुर्माना कर लिया.वे दोनों फिर आगे बढ़ गए.शहर के बाहर एक्सप्रेस हाइवे पर दायीं ओर जाना था तो रमेश को जहाँ हाइवे शहर से आने वाली रोड से मिलता था वहां से क्रॉस कर दूसरी ओर अपनी लेन पकडनी थी. तो भाई जब वे मोटर साइकल पर हाइवे के उस ओर जा रहे थे तो एक ट्रक वाला बड़ी तेज स्पीड से आ रहा था.दोनों ने उस ट्रक को हाथ से रुकने का इशारा किया...पर ट्रक वाले छोटी गाड़ियों की परवाह कहाँ करते है.,, और...! ट्रक ने उनके टक्कर मार दी.टल्ली बेताल ने अफ़सोस जताते हुए कहा. बेचारे दोनों मारे गए. उनके घर की खुशियाँ मातम में बदल गयी.उनका प्रेम परवान नहीं चढ़ सका शादी की तारीख तय होने से पहले दोनों दुनिया से विदा हो गए. पर भाई तू सच सच बता दोषी कौन था? वह लापरवाह ट्रक ड्राईवर जिसने इशारा करने के बाद भी ट्रक को नहीं रोका. या सलीम ट्रेफिक वाला जिसने बिना हेलमेट उन दोनों को आगे जाने दिया. या रमेश जो बिना हेलमेट हाइवे पर जाकर दोनों की जान खतरे में डाली. भाई जो तू सही सही नहीं बोला तो तेरी खोपडी के हजार टुकड़े हो जायेंगें. अब मेहरबानों कद्रदानों आपकी मदद की जरूरत है...रुस्तम सर्किट पकिया और भाईलोग मोबाईल आन करके भाई(विक्रम)की मदद को तैयार खड़े है...हो सकता है आपके सही जवाब से भाई की जान बच जाये.. (जवाब आखिरी टिप्पणी में मिलेगा. सही जवाब उम्मीद करता हूँ कि आपको आपकी टिप्पणियों में मिल जाएगा..वर्ना मैं बताने का प्रयास करूंगा. मित्रों! हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष एक लाख दस हजार लोग मारे जाते लगभग पांच लाख लोग घायल होते है...पन्द्रह हजार करोड़ का अनुमानित राष्ट्र को प्रतिवर्ष सम्पति की हानि होती है.. शायद हमारी कुछ जिम्मेदारी बनती है...इसलिए मैं छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ..आपके सुझावों और की आवश्यकता होगी. आप अपने सुझाव ईमेल से भेज सकते है.कई बार गंभीर विषयों पर गंभीर चर्चा बोझिल हो जाती है इसलिए मैंने इस विषय को हल्के फुल्के ढंग से कहने का प्रयास किया है.मूल प्रश्न यही है कि हम एक नागरिक के रूप में इतने अधिक लापरवाह क्यों हो जाते है कि अपनी जिन्दगी को खुद खतरे में डालकर दूसरों की गैर जिम्मेदारी तलाश करने की कोशिश करने लगते है.एक सड़क दुर्घटना एक परिवार की जिन्दगी हमेशा के लिए बदल देती है.इसमें खोई हुई चीजें कभी वापस नहीं मिलती है.फिर हम क्यों हेलमेट सीट बेल्ट को ट्रेफिक पुलिस की जिम्मेदारी समझते है. मैं जब छोटा था तो मेरे दादाजी हर पल मेरा ध्यान रखते थे.सारे संभावित खतरों से मुझे दूर रखने का प्रयास करते थे.मेरा स्वयम का भी यह मानना है कि किसी भी खतरे से खुद को बचाने वाले पहले व्यक्ति हम स्वयम ही हो सकते है. आपका सहयोग मिला तो इस तरह की और भी पोस्ट लिखने का प्रयास करूंगा.- प्रकाश)

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